बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर ग्रेटर बांग्लादेश को लेकर एक तेज बहस छिड़ी हुई है। सोशल मीडिया पर वायरल हुई विवादित नक्शे ने भारत और बांग्लादेश के बीच कूटनीतिक तनाव को हवा दे दी है। यह नक्शा कथित तौर पर ग्रेटर बांग्लादेश का माना जा रहा है जिसमें बांग्लादेश के साथ भारत के पूर्वोत्तर राज्य और म्यांमार के कुछ हिस्से को शामिल दिखाया गया है। हालांकि कई विशेषज्ञ और फैक्ट चेक संगठनों ने यह दावा किया है कि या नक्शा ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से जुड़ा है और इसे जानबूझकर एक एजेंडा के रूप में प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है।
नक्शे का विवाद कहां से शुरू हुआ?
यह विवाद बांग्लादेश की एक संगठन ‘सल्तनत ए बंग्ला’ ने ढाका विश्वविद्यालय परिषद में इस नक्शे की प्रदर्शनी कर के बढ़ाया था। इस प्रदर्शनी में दिखाया गया नक्शा ऐतिहासिक बंगाल सल्तनत के समय का था। जिसमें उसे दौड़ के प्रभावित वाले विभाग को दर्शाया गया है। हालांकि भारतीय मीडिया में से इस नक्शे को ग्रेटर बांग्लादेश के नाम से प्रचारित किया गया जिससे देश के आंतरिक संरचना में तनाव की स्थिति बन जाए।
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद में कहा कि इस तरह के विवादित नक्शे “सिर्फ इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने का प्रयास हैं” और “इन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए।” उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि भारत में किसी भी प्रकार के विस्तारवादी विचारधारा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सोशल मीडिया पर हलचल और फैक्ट-चेक
सोशल मीडिया पर नक्शे के स्क्रीनशॉट को तेजी से हवा मिलने लगी। और देखते-देखते यह स्क्रीनशॉट ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर वायरल हो गई बहुत सारे यूजर्स ने बांग्लादेश पर विस्तारवादी सोच लेकर आरोप लगाया। जबकि बांग्लादेशी फैक्ट्र चेकिंग वेबसाइट ने इसे फेक न्यूज़ का हवाला दिया। उनके मुताबिक यह नक्शा“आधुनिक बांग्लादेश के भूभाग को बढ़ाने का राजनीतिक प्रस्ताव नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक संदर्भ” था।
द बिजनेस स्टैंडर्ड (TBS News) ने भी रिपोर्ट प्रकाशित कर कहा कि यह विवाद “गलतफहमी और ग़लत प्रस्तुति” का परिणाम है।
पड़ोसी देशों में बदलता नैरेटिव
इस घटना के पीछे तुर्की से जुड़े कुछ एनजीओ की कथित भूमिका बताई जा रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, Turkish Youth Federation और उससे जुड़े कुछ समूह इस विचारधारा को प्रचारित कर रहे हैं। यह घटनाक्रम भारत के लिए कूटनीतिक दृष्टि से भी अहम है क्योंकि बांग्लादेश भारत का घनिष्ठ पड़ोसी और रणनीतिक सहयोगी है।
जनता की राय: हकीकत से ज्यादा हाइप?
रेडिट और अन्य ऑनलाइन मंचों पर कई अंतरराष्ट्रीय यूज़र्स इसे “हाइप” और “ग़लतफ़हमी” का परिणाम बता रहे हैं। हालांकि अभी बांग्लादेश खुद अपनी आंतरिक चुनौतियों से जूझ रहा है, इसलिए ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ का विचार यथार्थ से कोसों दूर है। विशेषज्ञों का भी मानना है कि इस तरह के विवाद सोशल मीडिया पर ट्रोल आर्मी या राजनीतिक लॉबी के जरिए ज्यादा हवा पाते हैं।
निष्कर्ष: सतर्क रहने की ज़रूरत
भले ही “ग्रेटर बांग्लादेश” का यह विवाद एक ऐतिहासिक नक्शे से उपजा हो और इसका आज की राजनीति से कोई प्रत्यक्ष संबंध न हो, लेकिन इससे यह स्पष्ट हो गया है कि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर फैलने वाली गलत जानकारी अंतरराष्ट्रीय रिश्तों को प्रभावित कर सकती है।
भारत और बांग्लादेश दोनों देशों की सरकारें इस मुद्दे को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की कोशिश कर रही हैं। फिलहाल यह विवाद एक सबक है कि किसी भी जानकारी को सही संदर्भ में देखने की ज़रूरत है।
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