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भारतीय टेस्ट क्रिकेट की दीवार कहे जाने वाले चेतेश्वर पुजारा ने लिया संन्यास

भारतीय टेस्ट क्रिकेट की दीवार चेतेश्वर पुजारा ने लिया संन्यास, भावुक संदेश के साथ कहा अलविदा। आज 24 अगस्त 2025 को पुजारा ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से यह घोषणा की और कहा कि अब वह सभी फॉरमेट से संन्यास ले रहे हैं। उनकी विदाई ने भारतीय क्रिकेट जगत को भावुक कर दिया है क्योंकि पिछले कई वर्षों से उन्होंने टीम इंडिया को संकट की घड़ी में संभालने का काम किया।

करियर का सफर और आँकड़े:

चेतेश्वर पुजारा का करियर भारतीय क्रिकेट इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। उन्होंने 103 टेस्ट मैचों में 7195 रन बनाए, जिनमें 19 शतक और 35 अर्धशतक शामिल हैं। उनका औसत 43 से ज्यादा का रहा, जो उनकी धैर्य का प्रतीक है। उनकी सबसे यादगार पारियों में 2012 में इंग्लैंड के खिलाफ 206, 2017 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 202 रन और 2021 गाब्बा टेस्ट में खेली गई 56 रन की साहसी पारी शामिल है, जिसने भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाई थी।

सोशल मीडिया पोस्ट पर क्या लिखा है ?

पुजारा ने संन्यास की घोषणा करते हुए लिखा – भारतीय जर्सी पहनना और राष्ट्रगान गाना मेरे जीवन का सबसे बड़ा गौरव रहा। अब समय आ गया है कि मैं क्रिकेट को अलविदा कहूँ। यह सफर बहुत अच्छा रहा और मैं हर उस समर्थक, साथी खिलाड़ी और परिवार का आभारी हूँ, जिन्होंने मुझे इस मुकाम तक पहुँचाया।

चेतेश्वर पुजारा ने लिया संन्यास

क्रिकेट जगत की प्रतिक्रियाएँ:

उनके संन्यास पर क्रिकेट जगत ने भावुक प्रतिक्रियाएँ दीं। पूर्व कप्तान अनिल कुंबले ने उन्हें भारतीय क्रिकेट का सच्चा प्रेमी बताया, वहीं गौतम गंभीर और रविचंद्रन अश्विन ने पुजारा की तकनीक, संघर्षशीलता और टीम भावना की सराहना की।

धैर्य और संघर्ष की मिसाल:

पुजारा की क्रिकेट यात्रा राजकोट की गलियों से शुरू होकर भारतीय टीम की सबसे मज़बूत दीवार बनने तक पहुँची। वे अक्सर टीम को मुश्किल हालात से निकालते रहे। उनकी बल्लेबाज़ी केवल रन बनाने तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह धैर्य, आत्मविश्वास  का प्रतीक थी।
उनका करियर हर युवा क्रिकेटर के लिए प्रेरणा है कि यदि समर्पण, मेहनत और धैर्य हो तो बड़े से बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है।

निष्कर्ष

चेतेश्वर पुजारा का संन्यास भारतीय क्रिकेट के एक सुनहरे अध्याय का अंत है। उनकी जगह शायद कोई और बल्लेबाज़ ले सके, लेकिन उनकी तरह संकट की घड़ी में “दीवार” बनकर खड़े रहना बहुत कठिन होगा। आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें न केवल एक बेहतरीन बल्लेबाज़, बल्कि एक सच्चे योद्धा के रूप में हमेशा याद रखेंगी।

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