राजस्थान में दो दिन नहीं बिकेगा मीट-मछली और अंडे,राजस्थान सरकार ने एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाते हुए घोषणा की है कि आने वाली पर्युषण पर्व और अनंत चतुर्दशी के अवसर पर पूरे प्रदेश में मीट, मछली और अंडों की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंधित रहेगी। यह आदेश 25 अगस्त 2025 को स्वायत्त शासन विभाग की ओर से जारी किया गया है और इसके तहत 28 अगस्त तथा 6 सितंबर 2025 को पूरे राजस्थान में नॉन-वेज की सभी दुकानों के साथ-साथ अंडों की बिक्री भी बंद रहेगी।
यह पहली बार है जब राज्य सरकार ने मांस और मछली के साथ-साथ अंडों की बिक्री पर भी रोक लगाने का आदेश दिया है। पहले के वर्षों में पर्युषण पर्व पर सिर्फ बूचड़खानों और मीट की दुकानों को बंद रखने का निर्देश दिया जाता था, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने अंडों को भी शामिल किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार धार्मिक भावनाओं और परंपराओं का सम्मान करते हुए एक सही निर्णय लेना चाहती है।
धार्मिक महत्व को देखते हुए फैसला:
जैन धर्म के लोगों के लिए पर्युषण पर्व और संवत्सरी का विशेष महत्व होता है। इस समय में जीव हत्या और नॉन-वेज भोजन को पूरी तरह वर्जित माना जाता है। यही कारण है कि जैन समाज लंबे समय से इस तरह के आदेश की मांग करता आ रहा था। अनंत चतुर्दशी भी एक ऐसा पर्व है जिसमें उपवास और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। सरकार का यह निर्णय इन त्योहारों के महत्व को और मजबूत करता है।
लोगों में प्रतिक्रिया:
सरकार के इस फैसले पर समाज में अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं। धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने इसे स्वागत योग्य कदम बताया है और कहा है कि इससे सामाजिक और धार्मिक परंपराओं को सम्मान मिलेगा। वहीं, नॉन-वेज विक्रेता और होटल व्यापारियों का कहना है कि इससे उनकी रोज़ी-रोटी पर असर पड़ेगा। विशेष रूप से अंडों पर रोक को लेकर चर्चा और बहस तेज़ हो गई है, क्योंकि अब तक इसे आमतौर पर सब्जी वर्ग का हिस्सा माना जाता था।
आदेश का प्रभाव:
इस आदेश से 28 अगस्त और 6 सितंबर को पूरे राजस्थान में सभी मीट, मछली और अंडे की दुकानें बंद रहेंगी। होटल और रेस्टोरेंट्स को भी इन दिनों में नॉन-वेज की अनुमति नहीं होगी। हालाँकि, शाकाहारी भोजन की बिक्री और रेस्टोरेंट संचालन पर कोई रोक नहीं है।
निष्कर्ष
राजस्थान सरकार का यह फैसला निश्चित रूप से ऐतिहासिक है क्योंकि यह पहली बार है जब राज्यभर में अंडों की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। यह कदम धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने के साथ-साथ राज्य में सामाजिक संतुलन बनाने का प्रयास भी माना जा रहा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह व्यवस्था कितनी प्रभावी होती है और समाज के विभिन्न वर्ग इसे किस रूप में स्वीकारते हैं।
