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पटना में बीजेपी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भिड़ंत, सड़कों पर हुआ जमकर हंगामा

बिहार की राजधानी पटना में शुक्रवार को बीजेपी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भिड़ंत हो गई , इसका मुख्य कारण था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके परिवार के खिलाफ अभद्र टिप्पणी। इस टिप्पणी के विरोध में बीजेपी कार्यकर्ता सड़क पर उतरे और कांग्रेस कार्यालय की ओर कदम बढ़ाया। जवाब में कांग्रेस कार्यकर्ता भी मैदान में आ गए और देखते ही देखते मामला हिंसक रुप में बदल गया।

नारेबाजी और लाठी-डंडों का इस्तेमाल

दोनों दलों के समर्थकों ने हाथों में मौजूद झंडों और डंडों को ही हथियार बना लिया। सड़क पर जमकर नारेबाजी हुई और एक-दूसरे पर हमला बोल दिया गया। कई जगह धक्का-मुक्की और मारपीट की घटनाएँ सामने आईं। इस झड़प में कुछ कार्यकर्ता घायल भी हुए।

बीजेपी और कांग्रेस

पुलिस का हालात पर काबू

झड़प की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुँची। कार्यकर्ताओं को काबू करने के लिए पुलिस को हल्का बल प्रयोग करना पड़ा। कई कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया और आसपास के इलाकों में अतिरिक्त सुरक्षा बल की तैनाती कर दी गई। दुकानदारों ने डर कर अपनी दुकानें जल्दी बंद कर दीं, जिससे आम लोगों में डर और अफरा-तफरी का माहौल बन गया।

बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने

बीजेपी नेताओं का कहना है कि पीएम और उनके परिवार पर टिप्पणी अस्वीकार्य है और कांग्रेस को इसके लिए सार्वजनिक माफी माँगनी चाहिए। दूसरी ओर कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी के लोग जान बूझकर माहौल बिगाड़ रहे हैं और राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं।

बीजेपी और कांग्रेस

इस भिड़ंत का असर सोशल मीडिया पर भी दिखाई दिया। ट्विटर और फेसबुक पर दोनों पार्टियों के समर्थकों के बीच जमकर बहस हुई। कई वीडियो और तस्वीरें वायरल हुईं, जिनमें कार्यकर्ताओं को लाठी-डंडों से भिड़ते हुए देखा जा सकता है।

बिहार की राजनीति में नया तनाव

यह घटना बिहार की राजनीति में बढ़ते तनाव को दर्शाती है। चुनावी मौसम नजदीक होने के कारण इस तरह की घटनाएँ और अधिक हो सकती हैं। अगर राजनीतिक दल संयम नहीं बरतते, तो आने वाले दिनों में हालात और गंभीर हो सकते हैं।

यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि लोकतंत्र में असहमति और विरोध स्वाभाविक है, लेकिन हिंसा को किसी भी परिस्थिति में जायज़ नहीं ठहराई जा सकती। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे विचारधारा की लड़ाई सड़कों पर झगड़े की बजाय संवाद और विमर्श से लड़ें।

निष्कर्ष

पटना की यह घटना साफ दिखाती है कि राजनीतिक दलों की आपसी लड़ाई किस हद तक आम जनता की शांति को प्रभावित कर सकती है। नेताओं की बयानबाज़ी और कार्यकर्ताओं की भिड़ंत का सीधा असर समाज पर पड़ता है। ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि राजनीतिक दल संयम बरतें और जनता के मुद्दों पर ध्यान दें, न कि एक-दूसरे के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दें। प्रशासन को भी सख़्ती दिखानी होगी ताकि इस तरह की घटनाएँ दोबारा न हों। लोकतंत्र में बहस और विरोध का सम्मान होना चाहिए, लेकिन हिंसा किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकती।

ऐसे ही जानकारी के हमारे साथ जुड़े रहे। धन्यवाद!

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