कर्नाटक के पवित्र तीर्थस्थान Shravanabelagola में सोमवार को एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया, जहाँ उपराष्ट्रपति C. P. Radhakrishnan ने महान जैन आचार्य श्री 108 Shantisagar Maharaj जी के प्रथम दर्शन की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। यह आयोजन Digambara जैन परंपरा तथा भारत की आध्यात्मिक विरासत को नए रूप से जगाने वाला साबित होने जा रहा है।

Shantisagar Maharaj की प्रारंभिक इतिहास और शताब्दी का महत्व
Shravanabelagola, हासन जिले में स्थित, जैन धर्म के पवित्र स्थल के रूप में पहचाना जाता है जहाँ आचार्य Shantisagar Maharaj जी ने 1925 में अपनी पहली यात्रा की थी। इस यात्रा को वर्ष 2025 में शताब्दी वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। अध्याय के रूप में आचार्य जी ने Digambara साधु परंपरा को पुनर्जीवित किया था और कठोर तपस्या तथा स्वाध्याय से प्रसिद्ध हुए थे। इस वर्ष की वर्षगांठ समारोह में उनके श्रावक संगठन, जैन मठ एवं उपराष्ट्रपति कार्यालय सहित कई संगठनों ने मिलकर कार्यक्रम की रूपरेखा को तय किया।
समारोह विस्तार एवं मुख्य गतिविधियाँ
उपराष्ट्रपति Radhakrishnan ने कार्यक्रम के दौरान आचार्य Shantisagar Maharaj जी की प्रतिमा स्थापना (Installation Ceremony) में भाग लिया और इसके साथ ही चौथे पहाड़ी भाग (Fourth Hill) का नामकरण भी इसी मौके पर किया गया। यह कदम सिर्फ एक साधु को श्रद्धांजलि ही नहीं था बल्कि यह तीर्थस्थान की भौगोलिक तथा सांस्कृतिक पहचान को नवजीवन देने वाला प्रतीक के माना जा रहा है। समारोह में आचार्य जी की 9,000 से अधिक तपस्वी यात्राओं, श्रम-भावना तथा धर्म चर्चा को विस्तारित रूप से उजागर किया गया।

आध्यात्मिक विरासत और आधुनिक प्रासंगिकता
आचार्य Shantisagar Maharaj जी सिर्फ एक जैन धर्म के अनुयायी ही नहीं थे बल्कि उन्होंने सामाजिक परिवर्तन, अहिंसा, सत्य एवं संयम जैसे मूल्यों को व्यापक रीति से बोलचाल में उतारने का भी काम किया। उनकी यात्रा और तपस्या ने यह स्पष्ट संदेश है दिया कि धर्म आधारित जीवन भी सामाजिक स्थिरता, नैतिक नेतृत्व और आत्म विकास की दिशा में अग्रसर हो सकता है।
आज जब धार्मिक स्थलों पर ज़्यादा संख्या में लोग दर्शन उपासना के बजाय सामाजिक सेवा तथा सांस्कृतिक बोध की तलाश में आए हुए हैं, तो उस संदर्भ में यह स्मरण समारोह संस्कृति संरक्षण तथा आंतरिक चिंतन प्रेरणा का एक उचित अवसर बनता है।
स्थानीय पर्यटन और सांस्कृतिक अर्थ
Shravanabelagola जैसे तीर्थस्थलों में शताब्दी संस्करण समारोह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन ही नहीं बल्कि राज्य स्तरीय पर्यटन, स्थानीय अर्थव्यवस्था एवं सांस्कृतिक जागरूकता का माध्यम बनते हैं। स्थानीय प्रशासन ने इस अवसर पर इंफ्रास्ट्रक्चर एवं आगंतुक विभाग सम्बन्धी तैयारियों तेज किया है, जिससे आने वाले वर्षों में इस स्थल की पहचान एक प्रमुख धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में और अत्यधिक पुष्ट हो सकती है। यदि हम प्रदेश और केंद्र दोनों के नज़रों से अवलोकन करें, तो इस तरह के आयोजन धार्मिक बाहुल्य भारत में आत्म पहचान को बल देने का काम करता है और सामाजिक सहिष्णुता, सांस्कृतिक सम्मान तथा स्थानीय सक्रियता को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष
उपराष्ट्रपति C. P. Radhakrishnan द्वारा आचार्य Shantisagar Maharaj जी की स्मृति यात्रा में भागीदारी एक प्रतीक है कि भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत सिर्फ अतीत कहानी नहीं रही, बल्कि वर्तमान अनुभव और भविष्य दृष्टि का भी अमूल्य हिस्सा बन चुका है। Shravanabelagola में यह शताब्दी समारोह हमें याद दिलाता है कि सही प्रेरणा, निरंतर तपस्या और सामाजिक नीति-संवाद से एक साधु यात्रा सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि मंदिर सेवा, शिक्षा प्रेरणा और स्थानीय सशक्तिकरण तक जा सकती है।
इसी प्रकार, आज यह आयोजन एक श्रद्धांजलि नहीं बल्कि भारत की सांस्कृतिक सततता और समाज निर्माण की दिशा में एक छोटा ही लेकिन महत्वपूर्ण कदम बन गया है।
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1 thought on “कर्नाटक में शताब्दी समारोह: उपराष्ट्रपति C. P. Radhakrishnan ने याद किया आचार्य श्री 108 Shantisagar Maharaj का महान योगदान”