7500 किताबों से बनी भगवान गणेश जी की प्रतिमा, जो तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के मनाली क्षेत्र में इस बार गणेश चतुर्थी का उत्सव बेहद अनोखे अंदाज़ में मनाया गया। यहाँ 7500 किताबों को जोड़कर भगवान गणेश की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई, जिसने न केवल श्रद्धालुओं का ध्यान खींचा बल्कि शिक्षा और ज्ञान का भी संदेश दिया।
इस अनोखी प्रतिमा ने गणेश चतुर्थी के पारंपरिक उत्सव को एक नया उत्साह प्रदान किया है और यह प्रतिमा सोशल मीडिया से लेकर स्थानीय समुदाय तक चर्चा का केंद्र बनी हुई है।
श्रद्धालुओं में उत्साह:
गणेश चतुर्थी पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन चेन्नई में बनी यह खास प्रतिमा हर किसी के लिए आकर्षण का विषय रही। 7500 पुस्तकों से निर्मित इस गणेश मूर्ति की ऊँचाई और भव्यता देखते ही बनती है।
आयोजकों का कहना है कि इस प्रतिमा का मुख्य उद्देश्य समाज में पढ़ाई-लिखाई और ज्ञान की महत्ता को उजागर करना है। किताबों को भगवान गणेश से जोड़कर यह संदेश दिया गया कि विघ्नहर्ता गणेश के आशीर्वाद से ही सही मायनों में शिक्षा का प्रकाश जीवन में उतरता है।

स्थानीय निवासियों और श्रद्धालुओं ने इस अनोखी प्रतिमा को देखने के लिए बड़ी संख्या में पहुँचकर उत्सव को खास बना दिया। कई लोगों ने इसे अब तक की सबसे अलग और प्रेरणादायक बताया है। प्रतिमा में प्रयुक्त किताबें धार्मिक, शैक्षणिक और साहित्यिक विषयों से संबंधित थीं, जो ज्ञान की विविधता को दर्शाती हैं। आयोजकों ने यह भी बताया कि उत्सव के बाद इन किताबों को ज़रूरतमंद बच्चों और पुस्तकालयों में दान कर दिया जाएगा, जिससे उनका सही उपयोग हो सके।
प्रतिमा की रचना और उद्देश्य:
इसकी खासियत केवल प्रतिमा की रचना तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसके माध्यम से समाज में पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने और शिक्षा की ओर लोगों का ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की गई। आमतौर पर गणेश चतुर्थी पर प्लास्टर ऑफ पेरिस और अन्य सामग्री से मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, जिससे पर्यावरण पर असर पड़ता है। ऐसे में किताबों से बनी यह मूर्ति न केवल पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि एक रचनात्मक और शिक्षा के प्रतिसंदेश भी देती है।
सोशल मीडिया पर भी इस प्रतिमा की तस्वीरें और वीडियो वायरल हो रहे हैं। लोग इसे “ज्ञानेश्वर गणपति” और “पुस्तक गणेश” के नाम से पुकार रहे हैं। कई शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे युवाओं को प्रेरित करने वाली पहल बताया है। उनका मानना है कि इस तरह की अनोखी सोच से धार्मिक आयोजनों को सामाजिक और शैक्षिक दोनों ओर ध्यान खींचा जायेगा।
समाज में शिक्षा को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे गणेश चतुर्थी जैसे धार्मिक उत्सव से जोड़ना आयोजकों की दूरदर्शिता को दर्शाता है। यह केवल एक प्रतिमा नहीं बल्कि एक संदेश है कि किताबें ही असली धन हैं और उनका प्रयोग समाज की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है।
निष्कर्ष
चेन्नई के मनाली क्षेत्र में 7500 पुस्तकों से बनी गणेश प्रतिमा ने सचमुच नया इतिहास रच दिया है। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं रहा, बल्कि शिक्षा, पर्यावरण और समाज के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गया है।
इस पहल से यह स्पष्ट होता है कि यदि धार्मिक आस्था को सामाजिक संदेश से जोड़ा जाए तो उसका प्रभाव कई गुना बढ़ सकता है। गणेश चतुर्थी पर स्थापित यह अनोखी प्रतिमा आने वाले कई वर्षों तक याद की जाएगी और संभवतः अन्य जगहों पर भी इसी तरह की प्रेरणादायक पहल देखने को मिलेगी।
ऐसे ही जानकारी के लिए हमारे साथ जुड़े रहे हैं। धन्यवाद!
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