Meerut से एक ऐसी चौंकाने वाली खबर सामने आई है जिसने आम लोगों से लेकर मेडिकल जगत तक में गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मामला एक ढाई साल के मासूम बच्चे से जुड़ा है, जिसकी आंख के पास चोट लगने के बाद उसके माता-पिता उसे इलाज के लिए एक प्राइवेट अस्पताल लेकर पहुंचे थे।
लेकिन वहां मौजूद डॉक्टर ने जिस तरह का उपचार किया, उसने सभी को हैरान कर दिया। आरोप है कि डॉक्टर ने घाव की गंभीरता को न समझते हुए वहां टांके लगाने की बजाय पांच रुपये वाली Feviqwik की ट्यूब उठा ली और उसे बच्चे के खुले घाव पर चिपका दिया। यह न सिर्फ गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार था, बल्कि बच्चे की आंख की रोशनी पर भी बड़ा खतरा बन सकता था।
चोट कैसे लगी और क्या हुआ?
यह घटना Meerut के जागृति विहार एक्सटेंशन स्थित मैपल्स हाइट की है, जहां रहने वाले फाइनेंसर जसप्रीत सिंह का ढाई साल का बेटा मनराज शाम को खेलते समय टेबल के कोने से जोर से टकरा गया। टक्कर इतनी तेज थी कि चोट आंख के बिल्कुल पास लगी और खून बहने लगा। बच्चे की हालत देखकर परिवार के लोग घबरा गए और उसे तुरंत नजदीकी एक प्राइवेट अस्पताल में लेकर पहुंचे।
परिजनों का कहना है कि डॉक्टर ने न तो घाव को सही से देखा और न ही कोई प्राथमिक मेडिकल प्रक्रिया अपनाई। जब घाव साफ करने और टांके लगाने की बात आती है, तो डॉक्टर का पहला कदम होता है घाव को अच्छी तरह साफ करना, ताकि संक्रमण न फैले। लेकिन इस मामले में डॉक्टर ने न सिर्फ घाव को ठीक से साफ नहीं किया, बल्कि उस पर सीधे Feviqwik लगा दी।
जसप्रीत सिंह ने बताया कि बच्चे को जिस तरह दर्द हो रहा था, वह असहनीय था। बच्चा लगातार रो रहा था और वहीं डॉक्टर बार-बार आश्वासन देते रहे कि “दर्द थोड़ी देर में कम हो जाएगा।” लेकिन दर्द कम होने की बजाय पूरी रात बढ़ता ही चला गया। माता-पिता रातभर बच्चे की चीखें सुनते रहे और समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर क्या गलत हो रहा है। बच्चे की बेचैनी लगातार बढ़ रही थी और उसकी आंख के पास सूजन और जलन भी बढ़ती जा रही थी। इसी दौरान माता-पिता को शक हुआ कि कहीं इलाज में कुछ गड़बड़ तो नहीं है।
दूसरे अस्पताल में खुली Feviqwik की पोल
सुबह होते ही वे उसे बिना देरी किए एक अन्य बड़े अस्पताल लोकप्रिय अस्पताल Meerut लेकर पहुंचे। यहां डॉक्टरों ने जब घाव की जांच की तो मामला गंभीर नजर आया। उन्होंने तुरंत माता-पिता से पूछा कि घाव पर क्या लगाया गया है, क्योंकि सतह पर कोई असामान्य परत दिख रही थी। जब उन्हें बताया गया कि घाव पर Feviqwik लगाया गया था, तो डॉक्टरों ने साफ शब्दों में कहा कि यह बच्चे के लिए बेहद खतरनाक हो सकता था।
अगर फेविक्विक का थोड़ा सा हिस्सा भी आंख में पहुंच जाता, तो उसकी रोशनी पर सीधा असर पड़ सकता था। डॉक्टरों ने यह भी बताया कि Feviqwik त्वचा के ऊपरी हिस्से को चिपका तो देती है, लेकिन अंदरूनी घाव खुला रह जाता है, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
लोकप्रिय अस्पताल के डॉक्टरों को घाव से Feviqwik हटाने में लगभग तीन घंटे लग गए। इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें बेहद सावधानी बरतनी पड़ी, ताकि बच्चे की नाजुक त्वचा को कोई नुकसान न पहुंचे और आंख सुरक्षित रहे। डॉक्टरों ने पूरी परत को एक-एक मिलीमीटर हटाया और जब असली घाव साफ दिखाई दिया, तब जाकर वे टांके लगाने की प्रक्रिया शुरू कर सके। डॉक्टरों ने बताया कि घाव काफी गहरा था और समय रहते सही उपचार न मिलता तो यह बड़ा खतरा बन सकता था।
परिवार का गुस्सा
जसप्रीत सिंह का कहना है कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि एक डॉक्टर इतनी बड़ी लापरवाही कैसे कर सकता है। उन्होंने कहा कि जहां टांके लगने चाहिए थे, वहां Feviqwik लगा देना किसी भी तरह से पेशेवर व्यवहार नहीं कहलाता। यह सिर्फ लापरवाही नहीं बल्कि मासूम की जान से खिलवाड़ जैसा है। परिवार इस मामले में स्वास्थ्य विभाग को शिकायत देने की तैयारी कर रहा है ताकि भविष्य में किसी और परिवार को ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े।
इस पूरे मामले ने चिकित्सा व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या प्राइवेट अस्पतालों की निगरानी सही तरीके से हो रही है? क्या ऐसे डॉक्टर बिना पर्याप्त अनुभव के इलाज कर रहे हैं? क्या ऐसे मामलों पर कड़े एक्शन की जरूरत नहीं है? एक तरफ जहां लोग डॉक्टरों को भगवान मानकर उनकी बात पर भरोसा करते हैं, वहीं दूसरी तरफ ऐसे मामले उस भरोसे को गहरी चोट पहुंचाते हैं।
निष्कर्ष
Meerut का यह मामला केवल एक बच्चे की चोट का नहीं, बल्कि चिकित्सा प्रणाली की गंभीर खामियों का आईना है। टांके की जरूरत वाले घाव पर Feviqwik जैसा केमिकल लगा देना न सिर्फ गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि जानलेवा भी हो सकता है। यह घटना बताती है कि इलाज के दौरान डॉक्टर की सावधानी और अनुभव कितना जरूरी होता है।
बच्चे के माता-पिता की जागरूकता और समय पर अस्पताल बदलने की वजह से उसकी आंख और रोशनी बच गई, लेकिन ऐसे कई मामले बिना खबर बने ही बड़ी घटना में बदल जाते हैं। ऐसे मामलों पर सख्त एक्शन और मेडिकल क्षेत्र में अधिक निगरानी की आवश्यकता है, ताकि किसी और मासूम की सेहत किसी की लापरवाही का शिकार न बने।
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