बांग्लादेश की राजनीति और न्याय प्रणाली को झकझोर देने वाले 21 अगस्त 2004 ग्रेनेड हमले के मामले में Bangladesh Supreme Court में आज ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया। अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए सभी 38 आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया। इसमें Bangladesh Nationalist Party (BNP) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारीक रहमान भी शामिल था। यह फैसला उस हमले से जुड़े पीड़ित परिवारों के लिए निराशाजनक है। इस हमले में 24 लोग मारे गए थे और सैकड़ों लोग घायल हुए थे।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
इस बहुचर्चित मामले की सुनवाई 6-सदस्यीय बेंच के चीफ जस्टिस सैयद रफात अहमद की अध्यक्षता द्वारा किया गया। अदालत ने राज्य की अपील को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि मुकदमे में इस्तेमाल किए गए इकबालिया बयान (Confessional Statements) प्रमाण के रूप में स्वीकार्य नहीं हुए।
साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस निर्देश को भी हटाने का आदेश दिया जिसमें गृह मंत्रालय को नए सिरे से जांच शुरू करने की सिफारिश की गई थी। इस फैसले के बाद इस मामले में जांच करने का रास्ता ही बंद हो गया है। अब इससे पीड़ित परिवारों की न्याय पाने की उम्मीदें और भी धुंधली हो गईं हैं।
21 अगस्त 2004 का दिल दहला देने वाला हमला
21 अगस्त 2004 को ढाका के बंगबंधु एवेन्यू पर आयोजित Awami League की एक रैली के दौरान यह भयावह ग्रेनेड हमला किया गया था। इस हमले में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना समेत कई नेता घायल हुए थे। 24 लोगों की मौत और सैकड़ों लोग गंभीर रूप से घायल होने की भी खबर आई थी।
हमले के बाद जांच की गई थी और 2018 के ट्रायल में कई आरोपियों को फांसी और उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। परन्तु 1 दिसंबर 2024 को हाई कोर्ट ने इन सज़ाओं को रद्द कर दिया और चार्जशीट को अवैध करार दिया था साथ ही सभी आरोपियों को बरी कर दिया था।
न्याय प्रणाली पर सवाल और बहस
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बांग्लादेश की न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता, राजनीतिक हस्तक्षेप, और पीड़ित परिवारों के लिए न्याय जैसे मुद्दों पर बहस को और तेज कर रहा है। आलोचकों का ऐसा मानना है कि यह निर्णय न्याय प्रणाली में जनता के भरोसे को कमजोर करने का काम कर रहा है।
वहीं फैसले के समर्थक इसे प्रक्रियात्मक त्रुटियों (Procedural Errors) को सुधारने और निष्पक्ष न्याय को बनाए रखने का प्रयास मान रहे हैं।अदालत का कहना है कि “कानूनी प्रक्रियाओं की शुद्धता” को प्राथमिकता देना ज़रूरी है, ताकि भविष्य में ऐसे मामलों की जांच पारदर्शी तरीके से की जाए।
निष्कर्ष
बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ एक मुकदमे का अंत नहीं है, बल्कि देश की न्याय प्रणाली, राजनीति और संस्थागत विश्वसनीयता पर गहन सवाल खड़ा कर रहा है। यह स्पष्ट है कि अदालत ने कानूनी प्रक्रियाओं को प्राथमिकता दी, लेकिन पीड़ित परिवारों के लिए यह न्याय निराशाजनक ही होगा।
21 अगस्त 2004 का हमला बांग्लादेश के इतिहास का एक काला अध्याय माना जाता है। इस फैसले की वजह से यह बहस और गहरा हो गया है कि क्या न्यायिक पारदर्शिता और राजनीतिक जवाबदेही के बीच संतुलन हो पाना संभव है?आपलोग इस मामले पर अपना विचार अवश्य प्रकट करें।
ऐसे ही और खबरों के लिए हमसे जुड़े रहें। धन्यवाद।
