Chhattisgarh के घने, दुर्गम और वर्षों से नक्सल गतिविधियों के लिए जंगलों में सुरक्षा बलों द्वारा चलाया गया Chhattisgarh Encounter इस समय देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह सिर्फ एक सामान्य मुठभेड़ नहीं थी, बल्कि एक सुविचारित, तकनीकी रूप से सशक्त और बहु-एजेंसी द्वारा प्लान किया गया बड़ा Anti-Naxal Operation था, जिसका लक्ष्य कई सालों से मोस्ट वांटेड सूची में शामिल कुख्यात नक्सली हिड़मा को खत्म करना था। हिड़मा पर 1 Crore का Reward घोषित था और वह लंबे समय से सुरक्षा बलों के लिए गंभीर खतरे के रूप में सामने आता रहा था।

उसकी मौत न सिर्फ एक नक्सली के अंत का संकेत है, बल्कि यह उस पूरी हिंसक विचारधारा पर भी वार है जो जंगलों में छिपकर वर्षों से निर्दोष नागरिकों और जवानों पर हमला करती रही थी। इसलिए इस एनकाउंटर ने नक्सलवाद विरोधी अभियान को नई दिशा और नई शक्ति प्रदान की है।
Chhattisgarh Encounter ऑपरेशन की शुरुआत
इस ऑपरेशन की पृष्ठभूमि कई दिनों से तैयार हो रही थी। Security Forces को लगातार इनपुट मिल रहे थे कि हिड़मा अपनी टीम के साथ Andhra–Chhattisgarh Border के भीतर गहरी लोकेशन में मूव कर रहा है। यह इलाका अत्यंत कठिन और जोखिम से भरा है, जहाँ घने पेड़-पौधे, पहाड़ी रास्ते और प्राकृतिक बाधाएँ जवानों के मूवमेंट को चुनौतीपूर्ण बना देते हैं। फिर भी इस बार सुरक्षा बल पहले से कहीं ज्यादा तैयार थे।
जवानों ने रात के अंधेरे में, लगभग 3 बजे के आसपास जंगल में अपनी पोजीशन लेना शुरू किया। अंधेरे में मूवमेंट इसलिए रखा गया ताकि नक्सलियों को किसी भी तरह की गतिविधि का अहसास न हो सके। इस अभियान में Drone Surveillance, Thermal Sensors और Ground Tracking Devices जैसी उन्नत तकनीकों का बेहद प्रभावी इस्तेमाल किया गया, जिसने नक्सलियों के संभावित ठिकानों को पहचानने और उनके मूवमेंट को मॉनिटर करने में बड़ी मदद की।
सुबह करीब 5 बजे जैसे ही जवानों ने जंगल के भीतर गहराई में कदम बढ़ाए, नक्सलियों ने अचानक एक योजनाबद्ध हमला शुरू कर दिया। शुरुआत में हमला बेहद तेज, उग्र और खतरनाक था, जो यह दिखाता है कि हिड़मा जंगल को भूगोल की तरह नहीं, बल्कि अपने घर जैसा जानता था। लेकिन इस बार जवान पूरी तैयारी के साथ आए थे। उन्होंने टैक्टिकल फॉर्मेशन लेते हुए मुठभेड़ को नियंत्रित किया और मजबूती से जवाब दिया।
हिड़मा का घिरना और ढेर होना
करीब दो घंटे चली इस भीषण गोलीबारी में नक्सलियों को धीरे-धीरे पीछे हटना पड़ा। जंगल की प्राकृतिक संरचना का फायदा उठाते हुए हिड़मा कई बार जगह बदलने की कोशिश करता रहा, लेकिन जवानों द्वारा बनाई गई रणनीति इतनी सटीक थी कि वह किसी भी दिशा में निकलने का रास्ता नहीं ढूंढ सका। जवानों ने हिड़मा को दोनों दिशाओं से घेरकर उसके भागने की हर कोशिश नाकाम कर दी। एक मौके पर हिड़मा ने जंगल की झाड़ियों की आड़ लेकर दूर निकलने की कोशिश भी की, लेकिन जवानों की सतर्कता और रणनीति ने उसे रोक लिया। अंततः उसे लगी गोलियों ने उसी जंगल में उसका अंत कर दिया।

एनकाउंटर खत्म होने के बाद जब नक्सलियों के शवों की पहचान की गई, तब आधिकारिक रूप से पुष्टि हुई कि ढेर हुआ मुख्य नक्सली वास्तव में हिड़मा ही था। यह खबर सुरक्षा एजेंसियों के लिए बेहद बड़ी सफलता थी।
नक्सलवाद की सबसे खतरनाक कड़ी का अंत
हिड़मा को नक्सलियों में एक ऐसा नाम माना जाता था, जो सिर्फ एक कमांडर नहीं बल्कि पूरे दक्षिण बस्तर के नक्सल नेटवर्क की रीढ़ था। वह PLGA Battalion-1 का प्रमुख था और संगठन के सबसे प्रशिक्षित लड़ाकों को ट्रेनिंग देने का जिम्मेदार भी था। उसकी पहचान एक बेहद चालाक, रणनीतिक और खतरनाक नक्सली के रूप में होती थी, जो Guerrilla Warfare का मास्टर था।
वह अचानक हमला करना, जवानों को घेरना, जंगल में गायब हो जाना और जाल बिछाकर सुरक्षा बलों को नुकसान पहुँचाना इन सभी तकनीकों में बेहद माहिर था। दंतेवाड़ा, सुकमा और कई बड़े हमलों में उसका सीधा हाथ था। यही कारण था कि सरकार ने उस पर 1 Crore का ईनाम घोषित किया था। उसका मारा जाना नक्सलियों के लिए वैसा ही है जैसे किसी संगठन का मुख्य दिमाग खत्म हो जाए।
सुरक्षा बलों की रणनीति क्यों रही ऐतिहासिक रूप से सफल?
इस ऑपरेशन की खासियत यह थी कि इसमें इंसानी बुद्धिमत्ता के साथ-साथ तकनीकी संसाधनों का भी अधिकतम उपयोग किया गया। Drone Mapping, Night Vision Devices, Thermal Imaging, और Multi-Team Coordination का उपयोग करके जवानों ने नक्सलियों को उनकी ही रणनीति में मात दी।
ऑपरेशन में शामिल जवानों का कहना है कि इस बार नक्सलियों की हर संभावित चाल को पहले से भांपकर उनकी हर दिशा पर टीमों को तैनात किया गया था, ताकि वे ना तो हमला कर सकें और ना ही बचकर निकल सकें।
हाई-अलर्ट, क्षेत्र पर कब्जा और लगातार अभियान
हिड़मा के मारे जाने के बाद पूरे इलाके में हाई-अलर्ट जारी कर दिया गया है। सुरक्षा बल जंगलों में क्षेत्र पर कब्जा अभियान चला रहे हैं ताकि नक्सली अपनी टीम को फिर से इकट्ठा न कर सकें। आसपास के गांवों में भी निगरानी बढ़ा दी गई है।
निष्कर्ष
यह Chhattisgarh Encounter न सिर्फ एक बड़ी सामूहिक सफलता है, बल्कि यह नक्सलवाद के भविष्य को दिशा देने वाला निर्णायक मोड़ भी है। देश की सुरक्षा एजेंसियों ने यह साबित कर दिया है कि चाहे चुनौती कितनी भी कठिन क्यों न हो, समन्वय, तकनीक और दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ उसका समाधान संभव है। हिड़मा का अंत आने वाले वर्षों में नक्सल गतिविधियों को कमजोर करेगा और क्षेत्र में स्थिरता और शांति की उम्मीद को मजबूत करेगा।
ऐसे ही जानकारी के लिए हमारे साथ जुड़े रहे, धन्यवाद।
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1 thought on “Chhattisgarh Encounter: कुख्यात नक्सली हिड़मा का एनकाउंटर, सुरक्षा बलों का बड़ा अभियान सफल”