देश की ऊर्जा नीति में Green Hydrogen को अगली क्रांति के रूप में देखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तहत एनर्जी मंत्रालय के सचिव ने यूरोपीय संघ में प्रमुख Hydrogen Europe के CEO and H2Global के अध्यक्ष के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की। इस चर्चा ने यह संकेत दिया है कि भारत अपनी National Green Hydrogen Mission (NGHM) को वैश्विक साझेदारी की दिशा में लेकर जाना चाहता है।
बैठक का उद्देश्य व सहयोग चक्र
मंत्रालय के तहत हुई यह बातचीत प्रौद्योगिकी विनिमय (technology exchange), साझेदार निवेश (joint investment), और हाइड्रोजन वैल्यू चेन (hydrogen value chain) पर केंद्रित थी। सचिव ने बताया कि भारत-EU सहयोग से भारत में Green Hydrogen इकोसिस्टम को तेजी मिलेगी और यूरोपीय संघ के अनुभव ओवरहेड व संसाधनों का लाभ भारतीय उत्पादन मॉडल पर निश्चित ही सकारात्मक परिणाम को सिद्ध करेगा।
हालाँकि भारत पहले से ही NGHM के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर इस दिशा में मध्यस्थ रूप से निरंतर काम कर रहा है, उदाहरणस्वरूप घरेलू इलेक्ट्रोलाइज़र विनिर्माण, स्टार्ट अप इनोवेशन, और परीक्षण प्रोजेक्ट्स की शुरुआत करना। इस बैठक ने इस प्रयास को एक वैश्विक संवाद मंच के रूप में स्थापित करने का अवसर दिया है।
भारत-EU की Green Hydrogen साझेदारी का रणनीतिक महत्व
यूरोपीय संघ में Green Hydrogen policy framework काफी विकसित है, और भारत इसमें शामिल होकर global standards व export pathways को शीघ्रता से मजबूत कर सकता है। उदाहरण के तौर पर EU-India Energy Panel की पिछली बैठकों में Green Hydrogen को प्रमुख प्राथमिकता दी गई थी।
भारत अपनी पूर्व घोषित production targets के अनुरूप इस साझेदारी को एक अवसर के रूप में बदलने की कोशिश कर रहा है, NGHM के तहत भारत का उद्देश्य है कि 2030 तक लगभग 5 मिलियन टन Green Hydrogen का उत्पादन करना और वैश्विक मांग का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा को अपने राष्ट्रीय उत्पादन के रूप में समाहित करना। इस संवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि Green Hydrogen ऊर्जा वैकल्पिक विकल्प नहीं बल्कि strategic resource बन चुका है, जिसमें भारत-EU सहयोग विशेष भूमिका निभा सकती है।
इन्वेस्टर इकोसिस्टम, नवोन्मेष और रोल आउट बैकिंग
बैठक में मुख्य बिंदु रहे: Green Hydrogen के उत्पादन में हो रहे लागत को कम करना, इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण को भारत में स्थान पारित करना, और हाइड्रोजन डेरिवेटिव्स जैसे green ammonia के निर्यात मार्ग को तैयार करना। NGHM पोर्टल पर भी यह उजागर है कि भारत निर्यात प्रोत्साहन मॉडल (export incentives) और ग्राह्यता बांधने की दिशा में अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए निरंतर काम कर रहा है।
इसके साथ साथ technical standards और certification scheme पर भी जोर दिया गया है ताकि भारत में उत्पादित Green Hydrogen को अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्वीकार्यता मिल सके। इस प्रकार, बैठक ने यह संकेत दिया है कि सरकार नीति घोषणा तक सीमित नहीं है बल्कि सरकार implementation mode में काम करती आ रही है, जिसमें यूरोपीय अनुभव विनिमय और भारतीय उत्पादन पोटेंशियल का संयोजन हो रहा है।
चुनौतियाँ व आगे की राह
हालाँकि अवसर विशाल हैं, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं है। Green Hydrogen उत्पादन के लिए आने वाली प्रमुख बाधाओं में, उचित इन्वेस्टमेंट, ट्रांसपोर्टेशन लॉजिस्टिक्स, निर्यात इन्फ्रास्ट्रक्चर व मानकीकरण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, भारत-EU के standards में ताल मेल बैठाना और उचित प्रमाणन प्रणाली बनाना की भी आवश्यकता होगी।
बैठक ने यह भी रेखांकित किया है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए multi stakeholder collaboration) और private industry की भी सक्रिय भागीदारी महत्त्वपूर्ण होगी। यदि यह सफल हुआ, तो भारत Green Hydrogen की वैश्विक हस्ती बन सकता है और EU जैसे बाजारों में निर्यात पथ खोल सकता है।
निष्कर्ष
संक्षिप्त में कहा जाए तो भारत द्वारा EU से हुई इस उच्च स्तरीय वार्ता ने Green Hydrogen को एक राष्ट्रीय महत्व स्थिति से कहीं आगे गति दी है। जब नीति, उत्पादन, नवोन्मेष एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग एक साथ मिलें, तभी आज के विकल्प से भविष्य का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होता आ रहा है।
NGHM के द्वारा उठाया गया यह कदम यह स्पष्ट संकेत देता है कि भारत self-reliance के साथ वैश्विक सहभागिता (global partnership) की दिशा में भी अग्रसर होने को प्रयासरत है। इसके परिणामस्वरूप आने वाले वर्षों में Green Hydrogen भारत के ऊर्जा विकास (energy development) के केंद्र में होगा, और यूरोपीय संघों के साथ हाथ मिलाकर इस दिशा में और अधिक उपलब्धता हासिल करेगा। इस प्रकार की बैठक एक चर्चा सत्र न होकर भारत-EU के बीच ऊर्जा सहयोग का एक नया अध्याय है, जिसमें Green Hydrogen केंद्र है और वैश्विक नेतृत्व दृष्टि को प्रमुखता दी जा रही है।
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