आज वैश्विक फार्मा उद्योग में एक बड़ा भूचाल मचाने वाला फैसला देखने को मिला है। पड़ोसी देश China ने Indian Pharma पर लगने वाले 30% import duty को घटाकर 0% करने का निर्णय लिया है। यह कदम Indian Pharma कंपनियों को चीनी बाज़ार में अब तक का सबसे बड़ा प्रवेश द्वार माना जा रहा है। जबकि, इस समय अमेरिका ने भारत के लिए उल्टा रुख अपनाया और imported medicines पर 100% tariff लगाने का निर्णय लिया है। विशेषज्ञों द्वारा इसे वैश्विक व्यापार समीकरणों में “New World Order” की शुरुआत माना जा रहा है।
Indian Pharma को मिला नया बाज़ार
भारत विश्व स्तर पर generic medicines और affordable pharma solutions के लिए प्रसिद्ध है। अब तक भारतीय कंपनियों के लिए चीन का बाज़ार आकर्षण का केंद्र था, परन्तु 30% Import duty के कारण प्रतिस्पर्धा अत्यधिक कठिन थी।
Import duty के खत्म होने का सीधा अर्थ यह है कि भारतीय कंपनियां अब अपनी दवाइयों को चीन में low-cost advantage के साथ बेचने में सक्षम होगी। विशेषज्ञों द्वारा ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि नजदीकी 3-5 सालों में भारत की फार्मा कंपनियां चीन के दवा बाज़ार का कम से कम 20-25% हिस्सा पर अपने आधिपत्य को स्थापित करेगी।
ऐसा माना जा रहा है कि यह कदम Indian Pharma exports को बढ़ाएगा साथ ही चीन को affordable और high-quality दवाइयां भी उपलब्ध कराएगा।
अमेरिका की सख्ती और नया शक्ति संतुलन
जहां चीन ने भारत को एक नया बाजार के लिए आमंत्रित किया है, वहीं अमेरिका के वर्तमान President Trump ने imported medicines पर 100% tariff लगाकर दवा बाज़ार में प्रवेश को और अधिक महंगाई का सामना करने का निर्णय लिया है।
इस फैसले से अमेरिकी उपभोक्ताओं पर आर्थिक दबाव में बढ़ोतरी होगी, जबकि भारत जैसी कंपनियों के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा और कठिन होने वाली है। ऐसी स्थिति में भारत-चीन के बीच नए व्यापारिक समीकरणों को और अत्यधिक मजबूती मिलेगी।
विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि अमेरिका द्वारा की गई यह कूटनीति निश्चित ही उसके लिए उलटी साबित होगी क्योंकि इससे दवाओं की कीमतों में काफी बढ़ोतरी होगी और अमेरिकी उपभोक्ताओं को affordable healthcare solutions से वंचित होना पड़ सकता है।
वैश्विक फार्मा व्यापार पर असर
यह घटनाक्रम global pharma trade में “dramatic shift” साबित हो सकता है। अभी तक अमेरिका Indian Pharma के लिए सबसे बड़ा बाज़ार रहा है, लेकिन अब चीन भी इस श्रेणी में तेजी से उभर सकता है।
India-China pharma collaboration आने वाले समय में Asia-centric supply chain को मज़बूती प्रदान करेगा।
अमेरिका की protectionist policies उसे इस दौड़ में पीछे ले जा सकती है। WHO और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का इस बदलाव पर कड़ी नज़र है, क्योंकि इस निर्णय का असर global drug pricing और public health accessibility पर सीधा पड़ सकता है।
भारत के लिए अवसर और चुनौतियां
भारत के लिए यह एक सुनहरा अवसर तो है, परन्तु चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। चीन का बाज़ार बड़ा है, लेकिन वहां की regulatory approvals, language barriers और distribution networks भारतीय कंपनियों के लिए शुरुआत में मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं।
इसके साथ अमेरिका के कड़े tariff से भारत को अपने export strategy को diversify करने की आवश्यकता है। अब कंपनियों को यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे उभरते बाज़ारों पर ध्यान देना पड़ेगा।
निष्कर्ष
चीन का यह निर्णय trade policy shift के साथ वैश्विक स्वास्थ्य सेवा और फार्मा व्यापार का turning point भी है। इससे Indian Pharma कंपनियों को अभूतपूर्व अवसर मिला और दूसरी ओर अमेरिका की नीतियों ने नई चुनौतियों को जन्म दे दिया है।
ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले वर्षों में वैश्विक फार्मा व्यापार का power balance अमेरिका से एशिया की ओर शिफ्ट हो जाएगा। भारत जैसे देश के लिए यह समय रणनीतिक और शीघ्र निर्णय लेने का है ताकि वह इस New World Order में अपनी जगह और अधिक मज़बूत बनाए रखे।
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