Ladakh में लंबे समय से राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची लागू करने की माँग चल रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब से Jammu-Kashmir से Ladakh को अलग कर केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया है, तब से यहाँ की आवाज़ को अनसुना किया जा रहा है। लोगों को डर है कि अगर उनके लिए विशेष संवैधानिक प्रावधान नहीं हुए, तो उनकी संस्कृति, जमीन और पर्यावरण को भारी नुकसान होगा।
इसी कारण Ladakh में धीरे-धीरे विरोध की लहर तेज होती गई। गाँव से लेकर कस्बों तक युवा और सामाजिक संगठन इसके समर्थन में जुटे। इस आंदोलन को सबसे मज़बूत स्वर तब मिला जब प्रसिद्ध पर्यावरणविद और शिक्षक सोनम वांगचुक ने अपने साथियों के साथ भूख हड़ताल शुरू की। वांगचुक ने इसे पूरी तरह शांतिपूर्ण ढंग से रखने की अपील की थी और कहा था कि Ladakh की आवाज़ लोकतांत्रिक तरीके से देश और सरकार तक पहुँचनी चाहिए। लेकिन हालात बिगड़ते-बिगड़ते हिंसक हो गए और अब यह एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है।
Ladakh में हिंसा और तनाव का माहौल
23 सितंबर को लेह शहर में अचानक हालात बेकाबू हो गए। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच झड़प शुरू हो गई। भीड़ ने नारेबाजी करते हुए बीजेपी कार्यालय की तरफ कदम बढ़ाया और वहां तोड़फोड़ की। इसके बाद गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने एक सुरक्षा बल की गाड़ी में आग लगा दिया। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आँसू गैस के गोले दागे और लाठीचार्ज किया। इस दौरान भगदड़ जैसी स्थिति बन गई और देखते ही देखते माहौल पूरी तरह तनावपूर्ण हो गया।
इस झड़प में चार लोगों की मौत हो गई और 60 से ज़्यादा लोग घायल हुए, जिनमें आम नागरिक और सुरक्षाबल दोनों शामिल हैं। घायल लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया, जहाँ कुछ की हालत गंभीर बताई जा रही है। हिंसा के इन दृश्यों ने पूरे देश का ध्यान लद्दाख की तरफ़ खींच लिया है और यह सवाल उठने लगा है कि आखिर शांति पूर्ण आंदोलन हिंसा में क्यों बदल गया।
सोनम वांगचुक का अनशन और अपील
आंदोलन की शुरुआत में सोनम वांगचुक ने भूख हड़ताल के जरिए शांतिपूर्ण तरीके से अपनी माँगें रखने की कोशिश की थी। उनका कहना था कि Ladakh के युवाओं को अपने भविष्य की चिंता है और अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो क्षेत्र की पहचान खतरे में पड़ सकती है। लेकिन जब प्रदर्शन हिंसक हो गया और मौतों की खबरें आने लगीं, तब उन्होंने अपना अनशन समाप्त करने का ऐलान किया।
वांगचुक ने कहा कि उनकी मंशा कभी भी हिंसा को बढ़ावा देने की नहीं थी और यह आंदोलन केवल संविधान और लोकतंत्र की सीमा में रहकर चलाया जाना चाहिए था। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे किसी भी उकसावे में आकर हिंसा का रास्ता न चुनें क्योंकि इससे उनकी माँगों की गंभीरता कमजोर पड़ सकती है। उनका संदेश साफ था कि हिंसा आंदोलन को बदनाम करती है और इसका सबसे ज्यादा नुकसान उसी क्षेत्र के लोगों को झेलना पड़ता है, जिनके लिए यह लड़ाई लड़ी जा रही है।
प्रशासन और सरकार की प्रतिक्रिया
हिंसा के बाद लेह प्रशासन ने कड़े कदम उठाए हैं। शहर में धारा 144 जैसे प्रतिबंधात्मक आदेश लागू कर दिए गए हैं ताकि किसी भी तरह की बड़ी भीड़ न जुट सके। कई इलाकों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की भारी तैनाती की गई है और इंटरनेट सेवाओं पर भी आंशिक रोक लगाई गई है। प्रशासन का कहना है कि हालात को काबू में लाना उनकी प्राथमिकता है और किसी भी तरह की अफवाह फैलने से रोकने के लिए यह कदम उठाए गए हैं।
केंद्र सरकार की ओर से भी बयान आया है कि वे Ladakh के प्रतिनिधियों से बातचीत करने को तैयार हैं और इसके लिए 6 अक्टूबर को बैठक तय की गई है। इस बैठक में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की माँगों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। सरकार के लिए यह एक कठिन चुनौती है क्योंकि एक तरफ लोगों की भावनाएँ हैं और दूसरी तरफ़ संवैधानिक व राजनीतिक सीमाएँ। लेकिन अब जब मामला हिंसा तक पहुँच गया है, तो सरकार पर दबाव बढ़ गया है कि वह इस दिशा में कदम बढ़ाए।
आगे का रास्ता और उम्मीदें
Ladakh का यह आंदोलन अब केवल एक क्षेत्रीय माँग नहीं रह गया है बल्कि राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन गया है। लोगों की मौत और बड़े पैमाने पर हुई हिंसा ने इसे और संवेदनशील बना दिया है। अब सभी की नजरें 6 अक्टूबर की बैठक पर टिकी हैं। स्थानीय लोग उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार उनकी माँगों को गंभीरता से लेगी और कोई ऐसा समाधान निकलेगा जिससे क्षेत्र की संस्कृति, पर्यावरण और युवाओं के भविष्य की रक्षा हो सके। कई लोग तो कह रहे है कि अगर सरकार समय रहते कदम नहीं उठाती, तो यह आंदोलन और लंबा खिंच सकता है और इससे Ladakh की शांति व सुरक्षा पर गहरा असर पड़ेगा।
निष्कर्ष
लद्दाख में भड़के इस आंदोलन ने यह साफ कर दिया है कि लोगों की आवाज को लंबे समय तक दबाकर नहीं रखा जा सकता। चार लोगों की मौत और सैकड़ों घायल होना एक गहरी चेतावनी है कि यदि माँगों को नजर अंदाज किया गया तो हालात और बिगड़ सकते हैं। लेकिन इस सबके बीच एक उम्मीद की किरण भी है शांति से बातचीत करें और इसका कोई समाधान निकाले जिससे वहां के लोगों को भी लाभ हो।
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