मोदी-अमित शाह पर वोट चोरी का आरोप, चुनाव आयोग पर भी उठे सवाल

मोदी-अमित शाह पर वोट चोरी का आरोप,यह बयान हाल ही में देश की राजनीति में हलचल मचाने वाला साबित हुआ है। विपक्ष ने एक बार फिर केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि बीजेपी लोकतंत्र की शाखा को चोट पहुँचा रही है और चुनावों में पारदर्शिता से खिलवाड़ किया जा रहा है। विपक्षी दलों का कहना है कि चुनाव आयोग की संस्था अब सत्ता पक्ष की मददगार बन गई है।

वोट चोरी का आरोप
वोट चोरी का आरोप

बीते कुछ वर्षों से लगातार चुनावों के परिणामों को लेकर कई सवाल उठाए जाते रहे हैं। ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर बार-बार सवाल खड़े होते हैं। विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी सत्ता पाने के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों को किनारे करके वोट चोरी और हेरफेर का सहारा लेती है। यही नहीं, चुनाव आयोग पर भी पक्षपात करने का आरोप लगाया जा रहा है।

विपक्षियों का कथन:

विपक्षी नेताओं का कहना है कि जब-जब चुनावी प्रक्रिया में निष्पक्षता की बात उठती है, तब चुनाव आयोग का रवैया सत्ता पक्ष के पक्ष में झुकता दिखाई देता है। चाहे चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन हो या फिर प्रचार में पैसे और संसाधनों का दुरुपयोग, विपक्ष का मानना है कि बीजेपी को हमेशा लाभ पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। यही वजह है कि कई बार लोकतंत्र चुनाव आयोग पर प्रश्न चिह्न लगने लगे हैं।

जनता की क्रिया:

इस मुद्दे ने जनता को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। आम मतदाता का सवाल यह है कि अगर वास्तव में वोट चोरी या धांधली हो रही है, तो क्या उनकी वोटिंग का अधिकार सुरक्षित है? लोकतंत्र का सबसे बड़ा आधार जनता का भरोसा है। यदि यही भरोसा डगमगाने लगे तो लोकतंत्र की नींव कमजोर हो सकती है।

बीजेपी का तथ्य:

बीजेपी की ओर से इन आरोपों का खंडन किया गया है। पार्टी नेताओं का कहना है कि यह विपक्ष की साजिश है, क्योंकि उन्हें जनता का समर्थन नहीं मिल रहा। बीजेपी का तर्क है कि यदि चुनाव आयोग निष्पक्ष न होता तो विपक्षी दलों की सरकारें कई राज्यों में न बनतीं। बीजेपी का कहना है कि जनता बार-बार उन्हें बहुमत देकर सत्ता में ला रही है और विपक्ष इस सच्चाई को स्वीकार करने के बजाय बेबुनियाद आरोप लगाता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की विश्वसनीयता पर बार-बार उठने वाले सवाल लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत हैं। यदि जनता का भरोसा कमजोर होता है तो इसका सीधा असर चुनावी प्रक्रिया और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर पड़ेगा।

निष्कर्ष:

लोकतंत्र को मज़बूत बनाए रखने के लिए न केवल राजनीतिक दलों को जिम्मेदारी निभानी होगी बल्कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं को भी अपनी निष्पक्षता और पारदर्शिता साबित करनी होगी। आरोप-प्रत्यारोप के इस दौर में सबसे ज्यादा जरूरी है कि जनता का भरोसा बना रहे। क्योंकि अंततः लोकतंत्र का असली नायक मतदाता ही है।

ऐसे ही जानकारी के लिए हमारे साथ जुड़े रहे हैं। धन्यवाद!


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