भारत की राजधानी दिल्ली में आज External Affairs Minister डॉ. एस. जयशंकर ने SAMHiTA Conference पर South Asia’s में पांडुलिपि परंपराओं और गणितीय योगदान का शुभारंभ किया। यह कॉन्फ्रेंस न केवल South Asia की प्राचीन विद्या और गणितीय योगदान को उजागर करती है, बल्कि आत्मनिर्भरता की अवधारणा को भी एक नए रुप से सामने लाती है।
दक्षिण एशिया की पांडुलिपि परंपराएँ पर ध्यान
दक्षिण एशिया की पहचान हमेशा से उसकी गहरी और समृद्ध manuscript traditions के लिए रही है। संस्कृत, पाली, प्राकृत, तमिल और अन्य भाषाओं में लिखी गई इन प्राचीन पांडुलिपियों ने मानव सभ्यता को मूल्य ज्ञान दिया है। SAMHiTA Conference इसी धरोहर को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करने का प्रयास है। डॉ. जयशंकर ने अपने संबोधन में कहा कि इन परंपराओं को समझना और दुनिया के सामने लाना सिर्फ सांस्कृतिक पहल नहीं है, बल्कि यह हमारी ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है।

गणितीय योगदान पर प्राचीन ज्ञान
इस कॉन्फ्रेंस का दूसरा बड़ा फोकस South Asia के गणितीय योगदान पर रहा। प्राचीन काल से ही भारतीय गणितज्ञों और विद्वानों ने शून्य, बीजगणित, ज्यामिति, और त्रिकोणमिति जैसी अवधारणाएँ की नींव रखी है। यही नहीं आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और भास्कर जैसे विद्वानों के शोध ने विश्व की वैज्ञानिक प्रगति में अहम भूमिका निभाई।
डॉ. जयशंकर ने बताया कि आधुनिक research और technology की दौड़ में इन योगदान को याद करना और उन्हें नए रुप में प्रस्तुत करना हमारी बौद्धिक नेतृत्व को और मजबूत बनाएगा।
आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय आत्मविश्वास का महत्व
अपने विचार से विदेश मंत्री ने कहा कि जब भारत वैश्विक मंच पर अपनी भूमिका को और सशक्त बना रहा है, तब आत्मनिर्भरता पर जोर देना बेहद आवश्यक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आत्मनिर्भर केवल आर्थिक मजबूती का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह हमारे राष्ट्रीय आत्मविश्वास पर आधारित है।
उन्होंने कहा- हमारी ऐतिहासिक विरासत और वर्तमान पहचान ही हमारे भविष्य की दिशा तय करती है। यह संदेश न केवल युवाओं बल्कि नीति निर्माताओं के लिए भी बेहद घटिया है।

भारतीय विरासत की भूमिका
डॉ. जयशंकर ने यह भी रेखांकित किया कि दुनिया से जुड़ाव की प्रक्रिया तेज़ होते ही हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। भारत को अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए आधुनिकता को अपनाना होगा। SAMHiTA Conference जैसे आयोजन इस दिशा में एक अहम कदम हैं, क्योंकि ये भारत को अपनी प्राचीन knowledge systems को आधुनिक perspective के साथ प्रस्तुत करने का अवसर देते हैं।
निष्कर्ष
दिल्ली में आयोजित SAMHiTA Conference यह साबित करती है कि दक्षिण एशिया की पांडुलिपि परंपराएँ और गणितीय योगदान सिर्फ इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की बौद्धिक यात्रा का आधार हैं।विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का यह संदेश आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय आत्मविश्वास ही हमारे भविष्य की दिशा तय करेंगे, भारतीय युवाओं और विद्वानों के लिए प्रेरणास्रोत है।
ऐसे ही जानकारी के लिए हमारे साथ जुड़े रहे। धन्यवाद!
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1 thought on “Delhi में हुआ SAMHiTA Conference का शुभारंभ: विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने किया उद्घाटन।”