श्रीनगर में राष्ट्रीय प्रतीक पर विवाद: Ashoka Emblem की अहमियत और उठते सवाल

जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से आई एक घटना ने देशभर में विवाद का माहौल बना दिया है। खबरों के अनुसार, श्रीनगर स्थित एक दरगाह परिसर में भारत के राष्ट्रीय प्रतीक Ashoka Emblem को पत्थर से कूचकर पूर्णरूप से क्षतिग्रस्त कर दिया गया है। Ashoka Emblem प्रतीक जो कि भारत की पहचान और आदर्शों का प्रतीक है, लेकिन इसके साथ हुई तोड़फोड़ ने राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक मूल्यों को लेकर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

Destruction of National Emblem
Destruction of National Emblem

अशोक स्तंभ: भारत की पहचान और आदर्श

Ashoka Emblem का इतिहास मौर्य वंश के राजा सम्राट अशोक से जोड़ा गया है, जिन्होंने इसे शांति, न्याय और समानता का प्रतीक के रूप में अपनाया था। भारत की स्वतंत्रता के बाद 1950 में इसे अपना National Emblem घोषित किया गया। इस स्तंभ में चार सिंह होते हैं जो शक्ति, साहस, आत्मविश्वास और गौरव का प्रतीक माने जाते हैं। इसके आधार पर लिखा सत्यमेव जयते भारत की संवैधानिक भावना के प्रतीक को दर्शाता है।

इस वजह से Ashoka Emblem कोई धार्मिक मूर्ति नहीं बल्कि भारतीय Constitutional Identity का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है।

घटना और प्रतिक्रियाएं

श्रीनगर की इस घटना ने सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रियाएं पैदा हो चुकी हैं। कई लोगों का मानना है कि यह सिर्फ प्रतीक का अपमान के साथ राष्ट्रीय अखंडता पर भी चोट करने जैसा है।

सोशल मीडिया पर एक बयान वायरल हुआ जिसमें कहा गया—

“Ashoka Emblem represents India, not God; it is an ideal, not an idol. And yet it is being smashed.”

यानी यह प्रतीक पूजा की वस्तु नहीं बल्कि भारत के आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता है।

डॉ. अंबेडकर का हवाला और नई बहस

इस विवाद के बीच डॉ. भीमराव अंबेडकर के एक पुराने बयान का भी जिक्र बहुत जोर शोर से किया जा रहा है—

“Allegiance of a Muslim is not to his nation but to his faith. Islam can never allow a true Muslim to adopt India as his motherland.”

हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि अंबेडकर का मकसद भारतीय समाज में धर्म और राष्ट्रवाद की जटिलताओं को उजागर करना था परन्तु आज के संवैधानिक भारत में हर नागरिक की निष्ठा इस राष्ट्र और लोकतांत्रिक मूल्यों के होने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

श्रीनगर की यह घटना केवल एक तोड़फोड़ नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्रतीकों की सुरक्षा और सम्मान पर गंभीर सवाल को जन्म देती है। अशोक स्तंभ भारत का secular और constitutional symbol है, जिसे किसी भी धर्म से कदापि नहीं जोड़ा जा सकता है।

भारत की असली ताकत उसकी Unity in Diversity को माना जाता है, और ऐसे प्रतीकों को आदर्श के रूप में स्वीकार करना चाहिए तथा देश को और अत्यधिक मजबूती प्रदान करने के लिए प्रयास करना चाहिए।

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